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  उनके बाद उनकी पुत्री प्रेम वसंत ने अपने गुरू सुरेश वाडकर के साथ गुरूजी के सपने को गुरूकुल के नाम से फिर से स्थापित करने की सोची, जहां संगीत के अभ्यर्थी संगीत प्रशिक्षण के साथ-साथ अभ्यास का लाभ भी उठा सकें। इस प्रकार सुरेश वाडकर के ​आजिवासन​ म्यूजिक अकादमी का जन्म हुआ। इसमें ​आजिवासन​ शब्द आचार्य जियालाल वसंत संगीत निकेतन से निकला है, जो गुरूजी की याद दिलाता है। ​इस साल आजिवासन संगीत प्रशिक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्टता के 84 साल पूरा करता है और 2017 आचार्य जियालाल वसंत की शताब्दी वर्ष के रूप में मना रहे हैं। जुहू में मुख्य अकादमी के अलावा इस सस्थान के मुंबई में 09, दुबई में 01 और हाल ही में अमेरिका में 01 शाखा खोली है। मुंबई की शाखाएं ठाणे, कांदिवली, प्रभादेवी, केंप्स काॅर्नर, पवई, बांद्रा , घाटकोपर, चेंबूर और सांताक्रूज़ में स्थित हैं। आज यहां करीब 1500 छात्र-छात्राओं को हिन्दुस्तानी और पश्चिम शास्त्रीय गायकी, वाद्ययंत्रों के साथ-साथ लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्यों जैसे कथक और भरतनाट्यम की शिक्षा वरिष्ठ एवं अनुभवी संगीत के पारखियों द्वारा दी जाती है। अन्य सभी संस्थानों से अलग खड़ा, आजिवासन हर इच्छुक प्रतिभा को समान अवसर देने में विश्वास करता है और इस प्रकार, हाल ही में विशेष छात्रों के लिए कक्षा शुरू कर दी गयी है। ]]>